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मिट्टी के पुतले ने ठुकराया है ।

मिट्टी के पुतले ने ठुकराया है । मिट्टी के पुतले ने ठुकराया है, रूह आज भी मुझसे ही हँसता होगा । माना कि मैं काबिल नहीं, औरों सा उत्तम नहीं । पर मुझ सा भी तेरा कोई अच्युतम प्रेम ग्राहक नहीं, न ही कोई करीब कहीं । मैं जग से अलग मैं सब से अलग, मैं प्रेम पाठ का वाहक प्रबल हूँ । मुझसा कोई तेरा निज नहीं, तुमसा कोई मेरा सजीव नहीं । © नवनीत सूर्यवंशी अर्थ- मिट्टी के बने शरीर ने मुझे अपनाने से मना कर दिया पर शरीर के अंदर रहने वाला अमर आत्मा मेरा ही आवाहन करता होगा । मानता हूँ कि मुझमे काबिलियत नही है उनके अनुसार और मै उत्तम भी नही हूँ । पर मुझसे अच्छा कोई प्रेम को अपनाने वाले भी नही और न ही कोई मुझसे करीब कोई उनके । मैं संसार से अलग हूँ मैं संसार मे रहने वाले सभी मनुष्यों से भी भीन्न हूँ, मैं प्रेम पाठ को साथ लेकर चलने वाला मजबूत मनुष्य हूँ । मुझ से ज्यादा कोई तुम्हारा अपना नहीं , तुमसे बढ़ कर मेरे लिए कोई दूसरा मनुष्य नहीं । ( माता पिता से बढ़ कर कोई नही हो सकता तो यहाँ प्रेमिका को उनके बाद ही रखा गया है ।)

जब कभी तुम्हारी याद सताती है ।

जब कभी तुम्हारी याद सताती है । जब कभी तुम्हारी याद सताती है तो मैं तकिये के अंदर चला जाया करता हूँ। आहट सुन मैं गाना गुनगुनाया करता हूँ , थोड़ा नासमझ हूँ पर यहाँ समझदारी दिखा अपनो को मुस्कुराया करता हूँ । जब कभी तुम्हारी याद सताती है तो मैं तकिये से अपना चेहरा छुपाया करता हूँ । सुवह उठकर मैं नल पर भाग जाया करता हूँ, फिर चेहरे से जल की धाराओं का निसान हटाया करता हूँ । मैं हर रोज छिपाया करता हूँ, धोखा दे मैं सभी को हँसाया करता हूँ । पर जब कभी तुम्हारी याद सताती है तो मैं तकिये के अंदर चला जाया करता हूँ । © नवनीत सूर्यवंशी

Shayari and love 1

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न जाने क्यों । Shayari and love 1 न जाने क्यों तुम दूर हो फिर भी पास लगते हो , जब भी तुम्हे तलाशता हूँ दुनियाँ के कोने में अक्सर दिल के पास दिखते हो । न जाने क्यों तुम दूर होकर भी पास लगते हो । 【 नवनीत सूर्यवंशी 】

मैं अनाज हूँ कंकरों से भरा ।

मैं अनाज हूँ कंकरों से भरा , पकड़ तराजू तौल ले । रख कर अपने ज्ञान को, कंकर मुझ से निचोड़ दे ।

कुछ बात थी ।

कुछ बात थी कुछ बात थी उनमें कुछ बात थी मुझ में,  फिर भी कुछ खामियां ख़ास थी हम में,  वो हमें समझते थे हम उन्हें समझते थे,  फिर भी छुपी हुई  सायद  कुछ राज थी हम में ।

दोस्ती ।

दोस्ती वो दोस्ती ही कैसी जो लफ्जो की राह तके , वो मोहब्बत ही कैसा जो दिल की न बात समझे,  करके सितम बेशुमार खुद पर मुझे वो बहलाती है,  नफरत दिखा कर मेरी वो परवाह करती है ..।

माँ ।

माँ । अक्सर लिखने को शब्द उपयुक्त होता था आरम्भ उचित मिलता था , जब बात माँ के विषय मे लिखने की आयी तो न आरम्भ समझ आता है न अंत समझ पाता हूँ । फँसा मैं ऐसी मझधार में जहाँ विषय वस्तु चयन नहीं कर पाता हूँ । आरम्भ कहीं से करता हूँ, दूजा प्रमुख पाता हूँ, दूजे को लिखने जाता हूँ, अनंत समुख पाता हूँ । माँ के ममता का उचित आरम्भ नही ढूंढ पाता हूँ उनके छमता का कोई अंत नही आंक पता हूँ । धरातल पर दिव्य उन्हें ही पाता जब प्रभु पूजन को जाता ममता के मूरत का अमिट सृजन उन्हें ही पाता हूँ । ( माँ का न आरम्भ है न अंत ये तो प्रेम है अनंत )