मिट्टी के पुतले ने ठुकराया है ।

मिट्टी के पुतले ने ठुकराया है ।


मिट्टी के पुतले ने ठुकराया है,
रूह आज भी मुझसे ही हँसता होगा ।

माना कि मैं काबिल नहीं,
औरों सा उत्तम नहीं ।

पर मुझ सा भी तेरा कोई अच्युतम प्रेम ग्राहक नहीं,
न ही कोई करीब कहीं ।

मैं जग से अलग मैं सब से अलग,
मैं प्रेम पाठ का वाहक प्रबल हूँ ।

मुझसा कोई तेरा निज नहीं,
तुमसा कोई मेरा सजीव नहीं ।

© नवनीत सूर्यवंशी

अर्थ-

मिट्टी के बने शरीर ने मुझे अपनाने से मना कर दिया पर शरीर के अंदर रहने वाला अमर आत्मा मेरा ही आवाहन करता होगा ।

मानता हूँ कि मुझमे काबिलियत नही है उनके अनुसार और मै उत्तम भी नही हूँ ।

पर मुझसे अच्छा कोई प्रेम को अपनाने वाले भी नही और न ही कोई मुझसे करीब कोई उनके ।

मैं संसार से अलग हूँ मैं संसार मे रहने वाले सभी मनुष्यों से भी भीन्न हूँ, मैं प्रेम पाठ को साथ लेकर चलने वाला मजबूत मनुष्य हूँ ।

मुझ से ज्यादा कोई तुम्हारा अपना नहीं , तुमसे बढ़ कर मेरे लिए कोई दूसरा मनुष्य नहीं ।

( माता पिता से बढ़ कर कोई नही हो सकता तो यहाँ प्रेमिका को उनके बाद ही रखा गया है ।)

Comments