जब कभी तुम्हारी याद सताती है ।


जब कभी तुम्हारी याद सताती है ।

जब कभी तुम्हारी याद सताती है तो मैं तकिये के अंदर चला जाया करता हूँ।

आहट सुन मैं गाना गुनगुनाया करता हूँ , थोड़ा नासमझ हूँ पर यहाँ समझदारी दिखा अपनो को मुस्कुराया करता हूँ ।

जब कभी तुम्हारी याद सताती है तो मैं तकिये से अपना चेहरा छुपाया करता हूँ ।

सुवह उठकर मैं नल पर भाग जाया करता हूँ, फिर चेहरे से जल की धाराओं का निसान हटाया करता हूँ ।

मैं हर रोज छिपाया करता हूँ, धोखा दे मैं सभी को हँसाया करता हूँ ।

पर जब कभी तुम्हारी याद सताती है तो मैं तकिये के अंदर चला जाया करता हूँ ।

© नवनीत सूर्यवंशी

Comments