तुझे देखने की चाहत नही मुझको न जाने फिर भी बेकरारी बढ़ जाया करती है क्यो तुमसे दिल लगाने की चाहत नहीं मुझको फिर भी ये गुस्ताखी हो जाया करती है क्यों हर बार तुझसे दुरी बनता हूँ मैं फिर भी ये फासले घट जाया करती है क्यों ये हकीकत है या अफसाना समझ पता नहीं फिर भी समझने की जिद कर जाया करता हूँ क्यों तुम्हारे नखरों की झोली है भरी पारी फिर भी और बढ़ जाया करती है क्यों तुम्हारे यादों को मिटाने की कोसिस करता हूँ मैं फिर न जाने तस्वीरें तुम्हारी बन जाया करती है क्यों तुम्हारी बातों को भूल जाने की ख्वाइश करता हूँ मैं फिर भी बे इम्तहान तसरीफ लाया करती है क्यों ....