धर्म वो निभाने चले ।
त्याग उनके अनमोल है,
प्यार उनके अनमोल है ।
त्याग कर अपनी खुशियाँ धर्म वो निभाने चले ।
स्थिर पग को उठा कर चले ,
हिर्दय को पत्थर बना कर चले ।
त्याग कर अपनी खुशियाँ धर्म वो निभाने चले ।
अश्रु को अपनी छिपा कर चले ,
चाहत को अपनी सुला कर चले ।
त्याग कर अपनी खुशियाँ धर्म वो निभाने चले ।
हिर्दय को अपनी रुला कर चले ,
प्रेम को अपनी झुठला कर चले ।
प्यार उनके अनमोल है ।
त्याग कर अपनी खुशियाँ धर्म वो निभाने चले ।
स्थिर पग को उठा कर चले ,
हिर्दय को पत्थर बना कर चले ।
त्याग कर अपनी खुशियाँ धर्म वो निभाने चले ।
अश्रु को अपनी छिपा कर चले ,
चाहत को अपनी सुला कर चले ।
त्याग कर अपनी खुशियाँ धर्म वो निभाने चले ।
हिर्दय को अपनी रुला कर चले ,
प्रेम को अपनी झुठला कर चले ।
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