दोस्ती वो दोस्ती ही कैसी जो लफ्जो की राह तके , वो मोहब्बत ही कैसा जो दिल की न बात समझे, करके सितम बेशुमार खुद पर मुझे वो बहलाती है, नफरत दिखा कर मेरी वो परवाह करती है ..।
डगमगाए कदम तेरा आकर किसी मोर पर सोच मत बढ़ता चल , चलते-चलते आप ही वो सम्भलेंगे मंजिल भी तुमको मिलेगीे , सोहरत भी तेरा होगा । कदम तेरा चट्टानों सा बनेगा भाग मत कर सफ़र भाग मत कर सफ़र । साथ होंगे तेरे मनोबल पग तेरा पथ भ्रमर भाग मत कर सफ़र । निश्चय अपनी दृढ कर मोह अपना त्याग अब भाग मत कर सफ़र । डट वही निडर बन भाग मत कर सफ़र ।
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