हवा के झोंके

हवा के झोंके ये खुला मैदान प्रातः काल की बेला सुहाना मौषम और उनकी यादें न जाने ये कैसी ख्वाइश है जागी की यू ही निहारता रहूँ बस निहारता रहूँ उन्हें.....

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