हवा के झोंके ये खुला मैदान प्रातः काल की बेला सुहाना मौषम और उनकी यादें न जाने ये कैसी ख्वाइश है जागी की यू ही निहारता रहूँ बस निहारता रहूँ उन्हें.....
बेकरार ऐ दिल को करार आप से मिलता है , हम चीज क्या है मोहतरमा मेरा हर साँस आप से ही जुड़ा है , ख्वाइस थी अस्तित्व अपनी बनाये रखने की पहचान अपना संजोये रखने का , पर मुकम्मल होना संभव नही सायद शर्तो की इस आजादी में , खैर अस्तित्व भी तो साँसों की मोहताज है साँसे भी तो आप से ही चलती है हमारी ...।
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